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थावे मंदिर का इतिहास । Thawe Mandir Bihar । थावे मंदिर गोपालगंज बिहार

थावे मंदिर का इतिहास । Thawe Mandir Bihar । थावे मंदिर गोपालगंज बिहार । थावे मंदिर कहा स्थित है ? थावे मंदिर कैसे पहुंचे

Thawe Mandir Bihar : पूरे विश्व को पहला विश्वविद्यालय देने वाले बिहार राज्य में असंख्य धार्मिक स्थल है. जहां जाकर आपके आत्मा को संतृप्ति मिलती है, उनमें से ही एक है मां थावे वाली भवानी का थावे मंदिर. आइए पोस्ट के जरिए थावे भवानी के इतिहास को पलटकर देखते हैं.

। थावे मंदिर गोपालगंज बिहार

थावे मंदिर कहा स्थित है ?

माता थावेवाली का मंदिर बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के थावे में स्थित है. यह गोपालगंज-सीवान राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोपालगंज जिले से महज 6 किलो मीटर दूरी पर स्थित है. दक्षिण दिशा में जिला मुख्यालय से 6 किमी की दूरी पर एक गाँव स्थित है, जहाँ मसरख-थावे खंड के पूर्वोत्तर रेलवे और सिवान-गोरखपुर लूप-लाइन का एक जंक्शन स्टेशन “थावे” है.

राजा मनन सिंह किला

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मां दुर्गा मंदिर के ठीक सामने एक सालों पुराना किला है लेकिन किले का इतिहास अस्पष्ट है. हथुआ के राजा का वहाँ एक महल था, लेकिन अब यह खंडर अवस्था में है. इसी मंदिर के पास आज भी मनन सिंह के भवनों का खंडहर भी मौजूद है. हथुआ राजा के निवास के पास एक पुराना मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है.

मंदिर के बाड़े के भीतर एक अजीबोगरीब पेड़ है, जिसका वानस्पतिक परिवार अभी तक पहचाना नहीं गया है. मूर्ति और वृक्ष के संबंध में स्थानीय लोगों के बीच विभिन्न किवदंतिया प्रचलित हैं.

किन नामों से जानी जाती है माँ थावेवाली

मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानीथावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं, परंतु शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है.

मां ने अपने प्रत्येक भक्त को वह दिया है जो वे पाने के योग्य हैं. मां को हमसे महंगी कोई तैयारी की जरूरत नहीं है. उसे कुछ सस्ती और आम चीजें चाहिए. माँ को भक्तों (भक्ति), पवित्रता (पवित्राता), और प्रेम जैसी कुछ चीजों को छोड़कर कुछ भी नहीं चाहिए.

थावे मंदिर के दर्शन करने के उत्तम दिन

सप्ताह में दो दिन, सोमवार और शुक्रवार, माँ को प्रसन्न करने के लिए पूजा करने के लिए खास माना जाता है.  इन दिनों भक्त अन्य दिनों की तुलना में बड़ी संख्या में माँ की पूजा करते हैं. “चैत्र” (मार्च) और “अश्विन” (अक्टूबर) के माह में “नवरात्र” के अवसर पर साल में दो बार विशेष मेले का आयोजन किया जाता है.

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थावे मंदिर का गर्भ गृह काफी पुराना है. तीन तरफ से जंगलों से घिरे इस मंदिर में आज तक कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. नवरात्र के सप्तमी को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचते है. चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में एक बड़ा मेला प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है.

थावे मंदिर का इतिहास

पौराणिक मान्यता है कि यहां मां अपने परम भक्त रहषु के बुलावे पर असम के कमाख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थीं. किवदंति है कि मां कमाख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वरमें प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं, और रहषु के मस्तक (सिर) को विभाजित (फाड़कर) करते हुए साक्षात दर्शन दिए थे. देश की 52 शक्तिपीठोंमें से एक थावे मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी है.

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जनश्रुतियों के मुताबिक राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वह अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा और परम भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. एक समय राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे.

मां थावेवाली के परम भक्त रहषु

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थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. पौराणिक कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था, जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा, परंतु राजा को विश्वास नहीं हुआ.

राजा ने रहषु को ढोंगी बताते हुए मां को बुलाने को कहा. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, परंतु राजा नहीं मानें. रहषु की प्रार्थना पर मां कोलकता, पटना और आमी होते हुए यहां पहुंची राजा के सभी भवन गिर गए और राजा की मौत हो गई.

मां ने जहां दर्शन दिए, वहां एक भव्य मंदिर है तथा कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर है. स्थानीय लोगों के बीच मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु भगत के मंदिर में भी जरूर जाते हैं नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है.

प्रतिवर्ष अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है. यह स्थान हथुआराज के ही अधीन था. मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआराज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी. अब यह बिहार पर्यटन के नक्शे में आ गया है.

कैसे पहुंचे ? थावे मंदिर

रेल मार्ग से :

एक रेलवे नेटवर्क है जो थावे को राज्य के विभिन्न हिस्सों और देश के अन्य शहरों से जोड़ता है. निकटतम रेलवे स्टेशन थावे रेलवे जंक्शन है जो सिवान, यानी गोरखपुर और पटना के माध्यम से भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.

राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से, लखनऊ-मुगलसराय और कानपुर-वाराणसी, लखनऊ-गोरखपुर के माध्यम से पटना और सीवान तक पहुंचने के लिए कई एक्सप्रेस और सुपर फास्ट ट्रेनें उपलब्ध हैं.

पटना या सीवान पहुंचने के बाद ट्रेन या बस द्वारा थावे मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. इतना ही नहीं अलावा पटना, सीवान, गोपालगंज, छपरा और गोरखपुर से पूरे दिन के लिए टैक्सी सेवा उपलब्ध है.

सड़क मार्ग से :

राज्य में एक अच्छा सड़क नेटवर्क है जो देश के अन्य हिस्सों के साथ राज्य के भीतर विभिन्न स्थानों को जोड़ता है. कई राष्ट्रीय राजमार्ग राज्य से होकर गुजरते हैं, निकटतम राजमार्ग को NH-28 (थावे मंदिर से 05 किमी दूर) के रूप में जाना जाता है, जो लखनऊ-गोरखपुर-मुजफ्फरपुर के माध्यम से जिला गोपालगंज को जोड़ता है.

बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों (गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी आदि) से नियमित बस और टैक्सी सेवाएं पूरे दिन उपलब्ध हैं.

हवाई मार्ग से :

बिहार की राजधानी पटना (PAT), फ्लाइट के जरिए देश के विभिन्न शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. पटना से माँ के मंदिर तक पहुँचने के लिए बहुत अच्छी रेल और सड़क परिवहन सुविधा उपलब्ध है. इसके अलावा महायोगी गोरखनाथ एयरपोर्ट (GOP), गोरखपुर के माध्यम से पहुंच सकते हैं.

careermotto

A self-motivated and hard-working individual, I am currently engaged in the field of digital marketing to pursue my passion of writing and strategising. I have been awarded an MSc in Marketing and Strategy with Distinction by the University of Warwick with a special focus in Mobile Marketing. On the other hand, I have earned my undergraduate degrees in Liberal Education and Business Administration from FLAME University with a specialisation in Marketing and Psychology.

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